लेख। आज का समय सूचना और तकनीक का समय है। मोबाइल और इंटरनेट ने जीवन को बदल दिया है। पहले लोग सुबह उठकर अख़बार पढ़ते थे,आपस में बैठकर चर्चा करते थे, वास्तविक जीवन के अनुभवों से सीखते थे। गाँव-शहर के चौपाल और मोहल्लों की बैठकों में विचार-विमर्श होता था।
उस दौर में रिश्तों का महत्व आज से अधिक था और लोग वास्तविकता में जीना जानते थे। किताबें पढ़ना, पत्र लिखना और समाज की गतिविधियों में भाग लेना ही मनोरंजन और ज्ञान का प्रमुख साधन था।
भूतकाल में “रील” शब्द फिल्मों या कहानियों तक ही सीमित था, जबकि “रियल” यानी असली(वास्तविक) जीवन ही लोगों का आधार था। उस समय पढ़ाई सस्ती व पढ़ाई में एकाग्रता थी, मेहनत और धैर्य से ही सफलता प्राप्त होती थी। आज भी वैसा ही है लेकिन धैर्य की कमी है। सोशल मीडिया के रील्स ने मानो जीवन को आभासी बना दिया है। हर कोई छोटी-सी वीडियो बनाकर तुरंत प्रसिद्ध होना चाहता है।
परंतु यह प्रसिद्धि क्षणिक है, जैसे गुब्बारा अधिक फूलते ही फूट जाता है। रील पर अधिक समय बिताने से पढ़ाई, रोजगार और व्यक्तिगत संबंध प्रभावित हो रहे हैं। आज का युवा अक्सर वास्तविक मेहनत की बजाय आभासी दुनिया में त्वरित पहचान खोजने लगा है।
यही कारण है कि ध्यान भटक रहा है, लक्ष्य धुंधला हो रहा है और परिणाम अपेक्षा के अनुसार नहीं मिल पा रहे हैं। रील्स हमें हँसी-मज़ाक या तात्कालिक आनंद तो दे सकती हैं, लेकिन जीवन की गहराई, उसका अनुभव, संघर्ष और उपलब्धियों का स्वाद रियल दुनिया में ही है।
फिर भी वर्तमान समय पूरी तरह नकारात्मक नहीं है। रील्स और डिजिटल साधन अगर सही दिशा में उपयोग हों तो ज्ञान, जागरूकता और प्रेरणा का बड़ा स्रोत बन सकते हैं। अनेक लोग शैक्षिक सामग्री, कला, संस्कृति और नवाचार को भी रील्स के माध्यम से समाज तक पहुँचा रहे हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब हम “रियल जीवन” की नींव मजबूत करें और रील को केवल एक साधन मानें, साध्य नहीं।
भविष्य की दृष्टि से स्पष्ट है कि यदि समाज और युवा वर्ग रील से अधिक रियल पर ध्यान देगा तो बेहतर परिणाम सामने आएंगे। शिक्षा, करियर, समाज और संस्कार तभी मजबूत होंगे जब समय और ऊर्जा का निवेश वास्तविक जीवन की ज़िम्मेदारियों और लक्ष्यों में किया जाए।
आने वाला कल उन युवाओं का होगा जो तकनीक का संतुलित उपयोग करते हुए वास्तविक मेहनत और ईमानदारी से अपनी पहचान बनाएँगे। तभी सच्ची सफलता और स्थायी संतोष मिलेगा।
अतः हमें भूतकाल से सीखते हुए, वर्तमान को सुधारते हुए और भविष्य की ओर देखते हुए यह स्वीकार करना होगा कि बगैर पसीना बहायें; पसंद (चाहे गये) के परिणाम प्राप्त नहीं किये जा सकते हैं इसलिए युवा पीढ़ी को पुस्तक-पुस्तकालय की ओर बड़ना ही होगा।
लेख- Dr.D.P.MalviyaA.P. (Davv,Indore)