प्रदीप कुमार नायक स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार
यदि मतदाता सक्रिय हो तो चुनाव में वह नेताओं को उनकी सीमा बता सकता हैं!उनको उनकी हस्ती, हैसियत और हकीकत का आभास मतदाता ही करा सकता हैं!आसमान में उड़ते नेताओं के पैर वहीं कतर सकता हैं!
हम लोग जनप्रतिनिधियों को वोट देकर चुनते हैं!हमें उन्हें चुनने का अधिकार हैं, लेकिन उन्हें वापस बुलाने का हक हासिल नहीं हैं! इंदिरा गाँधी की सरकार के पतन के बाद सभी राजनितिक दलों ने जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में जनता पार्टी का गठन किया और उस वक़्त जनता की ऐसी आंधी बह उठी कि इंदिरा की हिमालय जैसी सरकार धाराशाही हो गई और देश में एक नई सरकार का उदय हुआ!
उस वक़्त “राइट ऑफ रिकॉल “जनप्रतिनिधि वापसी के अधिकार की इतनी चर्चा हुई कि सरकार ने लोकसभा में इस पर बिल लाने का मत बना दिया था,मगर कुर्सी का लोभ मामूली लोभ नहीं हैं!
जनप्रतिनिधि वापसी के अधिकार की बात -बात बनकर रह गई! बात भले ही रह गई हो,लेकिन उस आग से आज भी धुआं आना बन्द नहीं हुआ हैं!आज नहीं तो कल,वह ज्वालामुखी बनकर जरूर फूटेगी!
लोकतंत्र में सार्वभौम, शक्ति जनता के हाथों में होती हैं तो फिर निर्वाचित जन -प्रतिनिधियों को वापिस बुलाने का अधिकार जनता को क्यों नहीं दिया जा सकता ?
हम घर के मालिक हैं और हमनें एक नौकर रखा हैं!वह नौकर ठीक से काम नहीं करता तथा उसके रहने से घर को खतरा हैं तो क्या हम उसे हटा नहीं सकते ?जब हम अपने नौकर को उसके गलत काम के कारण हटा नहीं सकते तो फिर मै घर का कैसा मालिक ?
जनतन्त्र में जनता को “किंग मेकर “कहाँ जाता हैं!यह सही भी हैं,लेकिन जब तक उसे “राइट ऑफ रिकॉल “प्राप्त नहीं होगा,उसकी सार्वभौम शक्ति अधूरी रहेगी और जनतन्त्र भी अधूरा रहेगा!इसीलिए पूर्ण और सफल जनतन्त्र के लिए जनप्रतिनिधि की वापसी का अधिकार जनता को प्राप्त होना चाहिए! इससे नई राजनीति का जन्म होगा! मांगने से भीख मिलती हैं, अधिकार नहीं!
अधिकार के लिए महासंग्राम छेड़ना पड़ता हैं!नेता लोग हमारे लोकतान्त्रिक अधिकारों पर विषधर सांप की तरह कुंडली मार कर बैठे हैं और हम जरा भी उधर नजर उठाते हैं तो फूंकार मारते हैं!
जिस तरह कृष्ण ने कालिया नाग के फन को कुचल दिया था,उसी तरह जनता को भी नेताओं के फन कुचलने होंगे!नेताओं के अत्याचारों की सीमा नहीं!वे भ्रष्टाचार के अवतार होते हैं! असजद सांसद को साल में पांच करोड़ से अधिक और विधायक को एक करोड़ से अधिक रूपये अपने -अपने क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार देती हैं!वे नेता लोग उन रुपयों से राजनीति का खेल खेलते हैं!
यदि वे सारे रुपये ईमानदारी से खर्च हुए होते हो आज सड़कों पर कोई भिखारी नहीं दिखाई देता, गांव अंधकार में डूबा नहीं रहता! शहरों में पानी के लिए हाहाकार नहीं मचता!लोग रोजी -रोटी के लिए नहीं भटकते! सांसद और विधायक को ये रुपये देना बन्द होना चाहिए!
विकास के नाम पर देश को सत्यानाश से बचाना होगा!इसके लिए देश के हर एक व्यक्ति को आगे आना होगा! लेखक – स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं, समाचार पत्र एवं चैनलों में अपनी योगदान दे रहें है! मोबाइल – 8051650610