संवाददाता। की कलम से
टंट्या_भील जो न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर बना था।
सौ से ज्यादा साल भारत पर राज करने वाले अंग्रेज सबसे ज्यादा किससे डरते थे.? इसका जवाब था वनों में रहने वाले जिनको अनपढ़, गवार कहां जाता था ऐसे जनजाति क्रांति वीरों से !! इसका एक जीता जागता उदाहरण था निमाड़ प्रांत का टंट्या भील।
अंग्रेजों को जिन जनजाति क्रांतिवीरों ने नाक में दम कर के रखा था ऐसे वीरों में टंट्या का नाम अग्रता से लिया जा सकता है। टंट्या भील की अपनी संस्कृति, धर्म के प्रति आस्था इतनी कर्मठ थी कि उसके लिए सीधे अंग्रेजों से उन्होंने पंगा लिया था। अंग्रेजों और आदिवासियों पर अत्याचार करने वाले जमींदारों के खिलाफ टंट्या भील ने इतना कठोर संघर्ष छेड़ा था की लोग टंट्या भील को अपना नायक मानने लगे थे।
हालांकि अंग्रेजों ने उनकी प्रतिमा लुटेरे के रूप में खड़ी तो कर दी लेकिन अपने इस नायक पर निमाड़ प्रांत के आदिवासियों का विश्वास इतना अटूट था कोई भी इनाम की लालच में उसका पता देना देने के लिए तैयार नहीं हुए थे। टंट्या भील की दहशत इतनी थी की अंग्रेजों ने धोखा घड़ी से जब उसे पकड़ा तब उसकी गूंज इंग्लैंड और अमेरिका तक पहुंची थी। टंट्या भील की पकड़ी जाने की खबर 10 नवंबर 1889 के न्यूयॉर्क टाइम्स में छप गई थी।
खबर में टंट्या मामा को सेंट्रल प्रोविंसेस का रॉबिनहुड बताया गया था। टंट्या भील ने अंग्रेजो के खिलाफ एक सशस्त्र सेना बनाई थी। गोरिल्ला युद्ध में यह सेना माहिर थी जिसके कारण अंग्रेज सैनिक परेशान होते थे। आखिर उसे पड़कर 4 दिसंबर 1889 को जबलपुर के जेल में इस आदिवासी योद्धा को फांसी दी गई। आज भी पुरा आदिवासी समाज उनको अपना पूर्वज, अपना मसीहा मानता हैं और उनको पूजता हैं l