शाहपुरा राजेन्द्र खटीक।शाहपुरा -सीमा सुरक्षा बल बीएसएफ से उप महा निरीक्षक डीआईजी के पद से सेवानिवृत्ति हुए शाहपुरा निवासी अश्विनी कुमार शर्मा को आखिरकार 24 साल बाद दिव्यांगता मुआवजा मिलेगा। जम्मू कश्मीर में 2001 में हुए एक बम विस्फोट में बीएसएफ अधिकारी अश्विनी कुमार शर्मा के 42% तक सुनने की शक्ति खोने के मामले में प्रशासनिक लापरवाही पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने फटकार लगाई।उक्त मामले की पैरवी करते हुए बीएसएफ अधिकारी अश्विनी कुमार शर्मा के पुत्र अधिवक्ता अंकुर व्यास ने केस की पैरवी की है।
अधिवक्ता अंकुर व्यास ने बताया कि न्यायमूर्ति सी हरिशंकर व न्याय मूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने अपने फ़ैसले में टिप्पणी की है कि 2001 में वार फ़्रंट पर लगी चोट के कारण 42% श्रवण शक्ति खो चुके बीएसएफ अधिकारी को अपना हक पाने के लिए अभी तक 24 साल क्यों इंतजार करना पड़ा। पीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि याची से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह नियमों के तहत अपने हक के मुआवजे की मांग के लिए हुए भीख का कटोरा लेकर प्रतिवादी के पास जाए। अदालत ने अधिकारियों से पूछा की बार-बार संपर्क करने वाले अश्विनी कुमार शर्मा को दिव्यांगता मुआवजा क्यों नहीं दे सकते थे ।
पीठ ने आश्चर्य व्यक्त किया कि अधिकारी याची के दावे को मानने को तैयार नहीं है और अदालत के समक्ष यह दलील दी है कि वह 2001 से 2017 के बीच 16 वर्षों तक चिकित्सीय रूप से स्वस्थ थे ।पीठ ने कहा इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं हो सकता की याचिका करता को 2001 के बाद 17 वर्षों तक और 2017 में मेडिकल बोर्ड के निर्णय के बाद भी 2018 में सेवानिवृत्ति होने तक सेवा में बनाए रखा गया ।अदालत ने माना कि याची केंद्रीय सिविल सेवा नियम 1939 के नियम 9,(3,)के तहत विकलांगता मुआवजे के हकदार थे। उक्त तथ्यों को देखते हुए पीठ ने याची को 27 सितंबर 2017 को उपयुक्तता प्रमाण पत्र जारी होने की तिथि से याची को मुआवजा जारी करने तक 9% प्रति वर्ष की दर से ब्याज की राशि देने का निर्देश भी दिया। अदालत ने उक्त टिप्पणी व आदेश दिसंबर 2022 में दिव्यांगता मुआवजे के उनके दावे को खारिज करने वाले आदेश को चुनौती देने वाली याची की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।