प्रशासन की उत्कृष्ट व्यवस्था बनी उदाहरण।दतिया। दीपावली की दौज के पावन अवसर पर दतिया जिले के प्रख्यात माता रतनगढ़ मंदिर में आस्था का अभूतपूर्व सैलाब उमड़ा।
इस अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय विशाल लख्खी मेले में देश के विभिन्न राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, दिल्ली आदि से आए लगभग 25 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने माता रतनगढ़ एवं कुँवर बाबा के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित किया। रतनगढ़ माता मंदिर पर लगने वाला यह लख्खी मेला न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता, विविधता और श्रद्धा का जीवंत प्रतीक भी है।
दीपावली के उपरांत लगने वाले इस मेले की गूंज सम्पूर्ण बुंदेलखंड क्षेत्र में सुनाई देती है। आस्था का अभूतपूर्व महासंगम,तीन दिनों तक रतनगढ़ माता मंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्रों में भक्ति, श्रद्धा और उत्साह का अनोखा वातावरण देखने को मिला।
श्रद्धालुओं ने माता रतनगढ़ के जयघोषों से सम्पूर्ण क्षेत्र को गुंजायमान कर दिया। मंदिर प्रांगण में निरंतर भजन-कीर्तन, धार्मिक अनुष्ठान और आरती का आयोजन चलता रहा, जिसमें श्रद्धालु घंटों तक सम्मिलित होकर दिव्यता का अनुभव करते रहे, श्रद्धालुओं का कहना था कि रतनगढ़ माता के दरबार में जो शांति और आस्था का अनुभव होता है, वह जीवन के हर संकट को दूर कर देता है।
प्रशासन की अनुकरणीय व्यवस्था बनी मिसाल, मेले के दौरान कलेक्टर स्वप्निल वानखड़े एवं पुलिस अधीक्षक सूरज कुमार वर्मा के नेतृत्व में प्रशासन ने बेहतर समन्वय, सतत निगरानी और अनुकरणीय व्यवस्था सुनिश्चित की। पूरे मेला क्षेत्र को 40 सेक्टरों में विभाजित किया गया,
जहाँ 1500 से अधिक प्रशासनिक कर्मियों एवं लगभग 2000 पुलिसबल की तैनाती की गई, मेले के दौरान कलेक्टर एवं एसपी स्वयं तीनों दिन रतनगढ़ में उपस्थित रहकर रातभर पैदल भ्रमण करते रहे, जिससे किसी भी स्थिति पर तत्काल नियंत्रण पाया जा सके।
भीड़ नियंत्रण हेतु अलग-अलग प्रवेश एवं निकास मार्ग निर्धारित किए गए, जिससे दर्शन व्यवस्था सहज एवं व्यवस्थित बनी रही, 100 से अधिक सीसीटीवी कैमरों और ड्रोन निगरानी से सम्पूर्ण मेला क्षेत्र की सुरक्षा पर सतत दृष्टि रखी गई।
श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अलग-अलग पार्किंग जोन, पेयजल टैंकर (100 अस्थाई, 50 स्थाई), स्वास्थ्य केंद्र एवं विश्राम स्थल स्थापित किए गए, एसडीआरएफ टीम ने नदी किनारे मोटरबोट से निरंतर पेट्रोलिंग की और सुरक्षा सुनिश्चित की। मगरमच्छों से बचाव के लिए नदी में महाजाल (Safety Net) लगाया गया,
जिससे श्रद्धालुओं का स्नान और आवागमन पूर्णतः सुरक्षित रहा।साफ-सफाई, प्रकाश, भोजन वितरण और पेयजल जैसी व्यवस्थाओं की स्वयं कलेक्टर वानखड़े ने मैदानी स्तर पर निगरानी कर गुणवत्ता सुनिश्चित की।
इन अभूतपूर्व व्यवस्थाओं से यह मेला न केवल आस्था का पर्व, बल्कि प्रशासनिक दक्षता का उत्कृष्ट उदाहरण बन गया, रतनगढ़ माता मेले का धार्मिक और लोक परंपरागत महत्व, दीपावली की दौज पर लगने वाले इस ऐतिहासिक मेले की जड़ें सदियों पुरानी परंपराओं से जुड़ी है।
मान्यता है कि जो व्यक्ति सर्पदंश (साँप के काटने) से पीड़ित होता है, वह रतनगढ़ माता और कुँवर बाबा की शरण लेकर पूर्णतः स्वस्थ हो जाता है, परंपरा अनुसार, सर्पदंश पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर “बंध” बांधा जाता है, यह कपड़े या धागे का होता है और माता रतनगढ़ या कुँवर बाबा के नाम से गले, हाथ या प्रभावित अंग पर बांधा जाता है।
दीपावली की दौज को आयोजित इस मेले में पीड़ित व्यक्ति बंध खुलवाने हेतु आता है। मंदिर के पुजारी विधिवत पूजा कर बंध खोलते है, जिससे माना जाता है कि जहर का प्रभाव समाप्त हो जाता है और व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। श्रद्धालु यह भी मानते है कि माता रतनगढ़ और कुँवर बाबा के चमत्कार से मृत व्यक्ति भी जीवन प्राप्त कर सकता है।
यही अटूट श्रद्धा हर वर्ष लाखों भक्तों को इस पवित्र स्थान तक खींच लाती है, मेले का शांतिपूर्ण और सफल समापन, तीन दिवसीय विशाल आयोजन का समापन शांति, श्रद्धा और अनुशासन के वातावरण में हुआ।
लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति के बावजूद किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना घटित नहीं हुई, जो प्रशासन की तत्परता का परिचायक है।
कलेक्टर स्वप्निल वानखड़े ने मेले की सफलता पर सभी श्रद्धालुओं का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि रतनगढ़ माता के दरबार में आए सभी श्रद्धालुओं ने अनुशासन और व्यवस्था का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। यह प्रशासन और जनता के सामूहिक सहयोग से ही संभव हुआ है।
उन्होंने मीडिया प्रतिनिधियों का भी आभार जताया जिन्होंने इस भव्य आयोजन की व्यापक कवरेज कर मेले की दिव्यता को जन-जन तक पहुँचाया।
अंत में, वानखड़े ने मेला आयोजन को सफल बनाने में सहयोग देने वाले सभी पुलिसकर्मियों, राजस्व, स्वास्थ्य, नगर पालिका, पंचायत एवं अन्य विभागों के अधिकारियों-कर्मचारियों को हृदय से धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ दीं।
रतनगढ़ मेला 2025 – आस्था, अनुशासन और प्रशासन का अद्भुत संगम, यह मेला न केवल धार्मिक आयोजन था, बल्कि यह संदेश देने वाला पर्व भी था कि जब जनश्रद्धा और सुशासन एकसाथ चलते है, तो किसी भी आयोजन को सफल, सुरक्षित और प्रेरणादायक बनाया जा सकता है।